Dashavatara stotra (दशावतारस्तोत्र)
Dashavatara stotra (दशावतारस्तोत्र)

Dashavatara Stotra (दशावतार स्तोत्र)

Dashavatara Stotram is dedicated to the Lord Vishnu, who has taken ten incarnations on this earth. Dashavatara means the ten primary avatars of Hindu god Shri Vishnu.

Dashavatara Stotram was the composer or written by Jayadeva.

Jayadeva was a Sanskrit poet during the 12th century. He is most known for his epic poem Gita Govinda which concentrates on Krishna’s love with the Gopi and Radha

Dashavatara stotra (दशावतार स्तोत्र) in Sanskrit with Hindi meaning

प्रलयपयोधिजले धृतवानसि वेदं, विहितवहित्रचरित्रमखेदम् ।
केशव धृतमीनशरीर, जय जगदीश हरे ॥ १॥

मीनावतारधारी केशव! हे जगदीश्वर! हे हरे! प्रलयकाल में बढ़े हुए समुद्रजल में बिना क्लेश नौका चलाने की लीला करते हुए आपने वेदों की रक्षा की थी, आपकी जय हो !!

क्षितिरतिविपुलतरे तव तिष्ठति पृष्ठे,
धरणिधरणकिणचक्रगरिष्ठे ।
केशव धृतकच्छपरूप जय जगदीश हरे ॥ २॥

हे केशव! पृथ्वीके धारण करने के चिह्न से कठोर और अत्यन्त विशाल तुम्हारी पीठ पर पृथ्वी स्थित है, हे कच्छपरूपधारी आपकी जय हो ॥

वसति दशनशिखरे धरणी तव लग्ना,
शशिनि कलङ्ककलेव निमग्ना ।
केशव धृतसूकररूप, जय जगदीश हरे ॥ ३॥

चंद्रमा में निमग्न हुई कलङ्करेखा के समान यह पृथ्वी आपके दाँत की नोक पर अटकी हुई सुशोभित हो रही है, ऐसे सुकररूपधारी जगत्पति हरि केशव जय हो ॥

तव करकमलवरे नखमद्भुतश‍ृङ्गं,
दलित हिरण्यकशिपुतनुभृङ्गम् ।
केशव धृतनरहरिरूप, जय जगदीश हरे ॥ ४॥

हिरण्यकशिपुरूपी देहासक्त​ को चीर डालनेवाले आपके शङ्गं धनुष के समान नख , आपके करकमल में हैं, ऐसे नृसिंहरूपधारी जगत्पति हरि केशव की जय हो ॥

छलयसि विक्रमणे बलिमद्भुतवामन,
पदनखनीरजनितजनपावन ।
केशव धृतवामनरूप, जय जगदीश हरे ॥ ५॥

हे वामनरूपधारी केशव! आपने पैर बढ़ाकर राजा बलिको छला तथा अपने चरण के जल से लोगों को पवित्र किया, ऐसे आप जगत्पति हरिकी जय हो ॥

क्षत्रियरुधिरमये जगदपगतपापम् ,
स्नपयसि पयसि शमितभवतापम् ।
केशव धृतभृगुपतिरूप, जय जगदीश हरे ॥ ६॥

हे केशव! आप जगत के ताप और पाप का नाश करते हुए, उसे क्षत्रियों के रुधिररूप जल से स्नान कराते हैं, ऐसे परशुरामरूपधारी जगत्पति हरि की जय हो ॥

वितरसि दिक्षु रणे दिक्पतिकमनीयम् ,
दशमुखमौलिबलिं रमणीयम् ।
केशव धृतरामशरीर, जय जगदीश हरे ॥ ७॥

जो युद्ध में सब दिशाओं में लोकपालों को प्रसन्न करनेवाली, रावण के सिर की सुन्दर बलि देते हैं, ऐसे श्रीरामावतारधारी आप जगत्पति केशव की जय हो ॥

वहसि वपुषि विशदे वसनं जलदाभं,
हलहतिभीतिमिलितयमुनाभम् ।
केशव धृतहलधररूप, जय जगदीश हरे ॥ ८॥

जो अपने गौर शरीर में हलके भय से आकर मिली हुई यमुना और मेध के सदृश नीलाम्बर धारण किये रहते हैं, ऐसे आप बलरामरूपधारी जगत्पति भगवान् केशव की जय हो ॥

निन्दसि यज्ञविधेरहह श्रुतिजातं,
सदयहृदयदर्शितपशुघातम् ।
केशव धृतबुद्धशरीर, जय जगदीश हरे ॥ ९॥

सदय हृदय से पशुहत्या की कठोरता दिखाते हुए यज्ञविधानसम्बन्धी श्रुतियों की निन्दा करनेवाले आप बुद्धरूपधारी जगत्पति भगवान् केशवकी जय हो !!

म्लेच्छनिवहनिधने कलयसि करवालं,
धूमकेतुमिव किमपि करालम् ।
केशव धृतकल्किशरीर, जय जगदीश हरे ॥ १०॥

जो म्लेच्छसमूह का नाश करने के लिये धूमकेतु के समान अत्यन्त भयंकर तलवार चलाते हैं, ऐसे कल्किरूपधारी आप जगत्पति भगवान् केशव की जय हो ॥

श्रीजयदेवकवेरिदमुदितमुदारं,
श‍ृणु सुखदं शुभदं भवसारम् ।
केशव धृतदशविधरूप, जय जगदीश हरे ॥ ११॥

इस जयदेव कवि की कही हुई मनोहर, आनन्ददायक, कल्याणमय तत्त्वरूप स्तुति को सुनो, हे दशावतारधारी! जगत्पति, हरि केशव! आपकी जय हो ॥

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