तिलेषु तैलं दधिनीव सर्पि

तिलेषु तैलं दधिनीव सर्पि:

तिलेषु तैलं दधिनीव सर्पिरापः स्रोतःस्वरणीषु चाग्नि।
एवमात्मात्मनि गृह्यतेऽसौ सत्येनैनं तपसा योऽनुपश्यति ।। – श्वेताश्वरोपनिषद्, अध्याय 1, मंत्र 15

Hindi Meaning

जिस प्रकार तिलो मे तेल मौजूद रहता है, दही में घी, ऊपरी तौर पर सूखे नजर आ रहे जल-स्रोतों के भीतर पानी, और अरणियों में अग्नि की विद्यमानता रहती है, उसी प्रकार देही के अंदर आत्मा का निवास रहता है । जो व्यक्ति सत्य तथा तप के माध्यम से उसे देखने या पहचानने का प्रयत्न करता है उसी को उसकी प्राप्ति होती हैं ।

Grammar

सर्पिः – Butter

स्रोतःसु – Underground springs

एवमात्मात्मनि  – एवम् +आत्मा  + आत्मनि  

अरणि – शमी नाम के वृक्ष की लकड़ी को अरणि कहा गया है ।

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