यदि इस संसार मे विषयो को भोग लेना ही उद्देश्य होता, तो पहले विषय को भोगकर ही हम तृप्त हो जाते ।
यदि भोग ही उद्देश्य हैं , तो इन भोगो का कभी भी क्षय नहीं होता और न ही भोक्ता मरणधर्मा होता ।
न ही वो कार्य कभी निष्फल होते, जो इन भोगो की प्राप्ति के लिये किये गये हो ।