Dialogue between King Janaka and Ashtavakra
Dialogue between King Janaka and Ashtavakra

Dialogue between King Janaka and Ashtavakra

These dialogue between King Janaka and Ashtavakra is mentioned in Mahabharata Vana Parva chapter 133.

Ashtavakra’s father rishi Kahoda, once went to Janaka, the king of Videha. He there defeated in debates by another scholar named as Bandi (बंदी), and as a result of his defeat he was immersed in water. When Ashtavakra grew up, he learned everything about his curse and his father.

Ashtavakra decided to go to the palace of king Janaka, and have the debates with Bandi. When Ashtavakra reached Janaka’s palace , he was stopped from entering the king sacrifice as only learned Brahmanas and Kings were allowed to enter, and he was just in his tenth year. With his knowledge he proved to Janaka that he is fit for the debate with Bandi and was allowed to enter in the palace.

Questions King Janaka asked to Ashtavakra :

राजोवाच
त्रिंशकद्वादशांशस्य चतुर्विंशतिपर्वणः ।
यस्त्रिषष्टिशतारस्य वेदार्थ स परः कविः ॥

राजा ने पूछा – जो पुरुष तीस अवयव, बारह अंश, चौबीस पर्व और तीन सौ साठ अर्रोवाले पदार्थको जानता है–उसके प्रयोजनको समझता है, वह उच्चकोटिका ज्ञानी है ॥

अष्टावक्र उवाच
चतुर्विंशतिपर्व त्वां पनाभि द्वादशप्रधि ।
तत् त्रिषष्टिशतारं वै चक्रं पातु सदागति ॥

अष्टावक्र बोले–राजन् ! जिसमें बारह अमावास्या और बारह पूर्णिमारूपी चौबीस पर्व, ऋतुरूप छः नाभि, मासरूप बारह अंश और दिनरूप तीन सौ साठ अरे हैं, वह निरन्तर घूमने वाला संवत्सररूप कालचक्र आपकी रक्षा करे ॥

राजोवाच
वडवे इव संयुक्त श्येनपाते दिवौकसाम् !
कस्तयोर्गर्भमाधत्ते गर्भ सुषुवतुश्च कम् ॥

राजा ने पूछा–जो दो घोड़ियोंकी भाँति संयुक्त रहती हैं एवं जो बाज पक्षीकी भाँति इठात् गिरनेवाली हैं, उन दोनों के गर्भको देवताओंमेंसे कौन धारण करता है तथा वे दोनों किस गर्भको उत्पन्न करती है ॥

अष्टावक्र उवाच
मा स्म ते ते गृहे राजञ्छात्रवाणामपि ध्रुवम् ।
वातसारथिरागन्ता गर्भ सुषुवतुश्च तम् ॥

अष्टावक्र बोले-राजन् ! वे दोनों तुम्हारे शत्रुओंके घरपर भी कभी न गिरें वायु जिसका सारथि है, वह मेघरूप देव ही इन दोनों के गर्भको धारण करनेवाला है और ये दोनों उस मेघरूप गर्भको उत्पन्न करनेवाले हैं ॥

राजोवाच
किंखित् सुप्तंन निमिपति किंस्विज्जातं न चोपति ।
कस्य स्विद्धदयं नास्ति किं स्विद् वेगेन वर्धते ॥

राजा ने पूछा–सोते समय कौन नेत्र नहीं मूँदता, जन्म लेनेके बाद किसमें गति नहीं होती, किसके हृदय नहीं होता और कौन वेगसे बढ़ता है ? ॥

अष्टावक्र उवाच
मत्स्यः सुप्तो न निमिपत्यण्डं जातं न चोपति ।
अश्मनो हृदयं नास्ति नदी वेगेन वर्धते ॥

अष्टावक्र बोले–मछली सोते समय भी आँख नहीं मूँदती, अण्डा उत्पन्न होनेपर चेष्टा नहीं करता, पत्थरके हृदय नहीं होता और नदी वेगसे बढ़ती है ॥

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