The eight ways of Dharma is explained by Rishi Saunaka (शौनक) to Yudhishthira , it is mentioned in Mahabharata Vana Parva chapter 2 verse 75-77
इज्याध्ययनदानानि तपः सत्यं क्षमा दमः ।
अलोभ इति मार्गोऽयं धर्मस्याष्टविधः स्मृतः ॥ 75
यज्ञ, अध्ययन, दान, तप, सत्य, क्षमा, मन और इन्द्रियोंका संयम तथा लोभका परित्याग — ये धर्म के आठ मार्ग हैं ॥
अत्र पूर्वश्चतुर्वर्गः पितॄयाणपथे स्थितः । ।
कर्तव्यमिति यत् कार्य नाभिमानात् समाचरेत् ॥ 76॥
इनमें पहले बताये हुए चार धर्म पितृयानके मार्ग में स्थित हैं अर्थात् इन चारोंका सकामभावसे अनुष्ठान करनेपर ये पितृयानमार्ग से ले जाते हैं।
उत्तरो देवयानस्तु सद्भिराचरितः सदा ।
अष्टाङ्गेनैव मार्गेण विशुद्धात्मा समाचरेत् ॥ 77॥
अन्तिम चार धर्मोको देवयानमार्गका स्वरूप बताया गया है। साधु पुरुष सदा उसी मार्गका आश्रय लेते हैं।