“पराञ्चि खानि” word is used in Kathopanishad Chapter 1 Section 2 verse 1
पराञ्चि खानि व्यतृणत्स्वयंभूस्तस्मात्पराङ्पश्यति नान्तरात्मन्।
कश्चिद्धीरः प्रत्यगात्मानमैषदावृत्तचक्षुरमृतत्वमिच्छन् ॥
Anvaya
स्वयम्भूः खानि पराञ्चि व्यतृणत् तस्मात् पराङ् पस्यति। न अन्तरान्मन्। कश्चित् धीरः प्रत्यगात्मानम् आवृत्तचक्षुः ऐक्षत् अमृतत्वम् इच्छन्
Hindi Meaning
स्वयंभू ने इन्द्रियो को बहिर्मुखी बनाया है, इसीलिए जीव बाहर की ओर देखता है, अन्तरात्मा को नही ! जिसने अमृतत्व की इच्छा करते हुए अपनी इन्द्रियो को रोक लिया है , वही धीर पुरुष प्रत्यगात्मानम् ( आत्मा) को देख सकता है
English Meaning
God has made senses to look outside, that is why Jiva look and seek to outside world and not the inner self. One those who has controlled there senses with a desire to achieve highest, they only can see this Atman present in every one.
As mentioned by Adi Shankara in the commentary of Kathopanishad 2.1.1
- पराञ्चि परागञ्चन्ति गच्छन्तीति – Those who go outside
पराक् means outside and अञ्चन means act of going
2. खानि खोपलक्षितानि श्रोत्रादीनीन्द्रियाणि खानीत्युच्यन्ते
ख means senses