Charaiveti Charaiveti

Charaiveti Charaiveti ( चरैवेति चरैवेति )

Charaiveti means Keep Moving

चरैवेति = चर् धातुः (लोट्लकारः मध्यमपुरुष एकवचन​ ) + एव​ + इति

These sanskrit phrase “Charaiveti Charaiveti” ( चरैवेति ) is mentioned in Shunahshepa-Upakhyana (शुनःशेपोपाख्यान), which is the part of Rigveda’s Aitareya Brahmana 7.33

In this story the Lord Indra teaches Rohit, the son of King Harishchandra. Indra has said these five shlokas towards the Rohit to guide him.

Five shlokas uttered by Indra

नानाश्रान्ताय श्रीरस्तीति रोहित शुश्रुम।
पापो नृषद्वरो जन इन्द्र इच्चरतः सखा चरैवेति ! 1

हे रोहित, परिश्रम न करने वाले व्यक्ति को “श्री” प्राप्त नही होती हैं ऐसा हमने सुना है । एक ही स्थान पर निष्क्रिय बैठे रहने वाले विद्वान व्यक्ति को लोग हीन मानते हैं । विचरण में लगे जन का ईश्वर साथी होता है । अतः तुम चलते ही रहो ।

पुष्पिण्यौ चरतो जङ्घे भूष्णुरात्मा फलग्रहिः।
शेरेऽस्य सर्वे पाप्मानः श्रमेण प्रपथे हताश्चरैवेति ! 2

जो व्यक्ति कार्यशील रहता है, उसकी जघाओं में फूल खिलते हैं, और शरीर में फल लग जाते हैं ! कर्मठ व्यक्ति के मार्ग की सारी बाधाएँ नष्ट हो जाती हैं ! अतः तुम चलते ही रहो ।

आस्ते भग आसीनस्योर्ध्वस्तिष्ठति तिष्ठतः।
शेते निपद्यमानस्य चराति चरतो भगश्चरैवेति ! 3

जो बैठा रहता है, उसका भाग्य (भग) भी रुका रहता है । जो उठ खड़ा होता है उसका भाग्य भी उसी प्रकार उठता है । जो सोया रहता है उसका भाग्य भी सो जाता है । जो विचरण करता है उसका भाग्य भी चलने लगता है । अतः तुम चलते ही रहो

कलिः शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापरः।
उत्तिष्ठंस्त्रेता भवति कृतं संपद्यते चरंश्चरैवेति ! 4

जो सो रहा है वह कलियुग में है, निद्रा से उठने वाला द्वापर युग में है । उठकर खड़ा होने वाला त्रेता युग में है और श्रम करने वाला सतयुग मे है ! अतः तुम चलते ही रहो ।

चरन् वै मधु विन्दति चरन् स्वादुमुदुम्बरम्
सुर्यस्य पश्य श्रेमाणं यो न तन्द्रयते चरंश्चरैवेति ! 5

चलता हुआ मनुष्य ही मधु पाता है,चलता हुआ ही स्वादिष्ट फल चखता है, सूर्य का परिश्रम देखो जो नित्य चलता हुआ कभी आलस्य नहीं करता।अतः तुम चलते ही रहो ।

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