वसुदेवसुतं देवं
वसुदेवसुतं देवं

Madhurastakam (मधुराष्टकम्) is a Sanskrit composition in devotion of Krishna, composed by the Sri Vallabhacharya.

Sri Vallabhacharya was a saint who was follower of Vaishnavism and founded Pushtimarg which emphasizes on the unconditional bhakti and seva of Krishna. He created many literary pieces including the Anubhashya (commentary on Brahmsutra), Bhagavata Tika Subodhini and Siddhanta Rahasya.

Madhurastakam (मधुराष्टकम्) with Hindi meaning :

अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरम्।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥1।।

श्री कृष्ण के होंठ मधुर हैं, मुख मधुर है, नेत्र (ऑंखें) मधुर हैं, मुस्कान मधुर है ! हृदय मधुर है, चाल भी मधुर है, मधुराधिपति (मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण), सभी प्रकार से मधुर है !

वचनं मधुरं चरितं मधुरं, वसनं मधुरं वलितं मधुरम्।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥2।।

भगवान श्रीकृष्ण के वचन (बोलना) मधुर है, चरित्र मधुर है, वस्त्र मधुर हैं, वलय, कंगन मधुर हैं ! चलना मधुर है,भ्रमण (घूमना) मधुर है, मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण (मधुराधिपति),आप सभी प्रकार से मधुर है !!

वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः, पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥3।।

श्री कृष्ण की वेणु मधुर है, बांसुरी मधुर है; चरणरज मधुर है, उनको चढ़ाये हुए फूल मधुर हैं; हाथ (करकमल) मधुर हैं; चरण मधुर हैं ! नृत्य मधुर है; मित्रता मधुर है; हे श्रीकृष्ण (मधुराधिपति); आप सभी प्रकार से मधुर है !

गीतं मधुरं पीतं मधुरं, भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम्।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥4।।

श्री कृष्ण के गीत मधुर हैं; पीताम्बर मधुर है; भोजन (खाना) मधुर है; शयन (सोना) मधुर है ! रूप मधुर है; तिलक (टीका) मधुर है; हे भगवान् कृष्ण (मधुराधिपति); आप सभी प्रकार से मधुर है !

करणं मधुरं तरणं मधुरं, हरणं मधुरं रमणं मधुरम्।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥5।।

कार्य मधुर हैं; तारना मधुर है (दुखो से तारना, उद्धार करना); हरण मधुर है (दुःख हरण); रमण मधुर है ! उद्धार मधुर हैं; शांत रहना मधुर है; हे भगवान् कृष्ण (मधुराधिपति); आप सभी प्रकार से मधुर है !

गुंजा मधुरा माला मधुरा, यमुना मधुरा वीची मधुरा।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥6।।

गर्दन मधुर है; माला भी मधुर है; यमुना मधुर है; यमुना की लहरें मधुर हैं ! यमुना का पानी मधुर है; यमुना के कमल मधुर हैं; हे भगवान् कृष्ण (मधुराधिपति); आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है !

गोपी मधुरा लीला मधुरा, युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम्।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥7।।

गोपियाँ मधुर हैं; कृष्ण की लीला मधुर है; उनक सयोग मधुर है; वियोग मधुर है ! निरिक्षण (देखना) मधुर है; शिष्टाचार (शिष्टता) भी मधुर है; हे भगवान् कृष्ण (मधुराधिपति); आप सभी प्रकार से मधुर है !

गोपा मधुरा गावो मधुरा, यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥8।।

गोप मधुर हैं; गायें मधुर हैं; लकुटी (छड़ी) मधुर है; सृष्टि (रचना) मधुर है ! दलन (विनाश करना) मधुर है; फल देना (वर देना) मधुर है; हे भगवान् कृष्ण (मधुराधिपति); आप सभी प्रकार से मधुर है

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